झूठे वादों से भरी राजनीति (Politics of Myths)


अभी कुछेक महीनों बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, तो चुनावी वादों का बाजार भी गर्म है। हर पार्टी अपने-अपने फायदे के लिए जनता को अपने-अपने अलग-अलग तरीकों से आकर्षित करना चाहती हैं। कांग्रेस आम-आदमी का राग अलापती है, तो बीजेपी को अचानक भगवान श्री राम जी की याद गयी है। समाजवादी पार्टी अल्पसंख्यकों की बात करती है, तो ..पा. को बहुजन और दलित याद गये हैं। लेकिन कोई भी पार्टी भ्रष्टाचार, महंगाई, आतंकवाद और महिलओं की सुरक्षा जैसे राष्ट्रीय मुद्दों को चुनावी मुद्दा नहीं बनाना चाहती। क्योकि (शायद) ये पार्टियां स्वयं ही इन मुद्दों में फंसी हुयी है। तभी तो राष्ट्रीय मुद्दे, क्षेत्रीय और जातिगत मुद्दों के सामने गौण रह गये हैं।
    बीजेपी के नेता वादा कर रहे हैं कि अगर बीजेपी बहुमत में आई तो अयोध्या में राम-मंदिर बनायेगी। तो मैं ये सवाल पूछना चाहता हूँ  बीजेपी के उन हुक्मरानों से कि क्या गारंटी कि तुम अपना वादा निभाओगेक्योकि पिछली बार जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में NDA की सरकार बनी थी, तब भी तो जिस "राम" के नाम का इस्तेमाल करके सरकार बनाई थी,  उसी राम को सत्ता की कुर्सी हाथ आते ही भूल गये। तब तो 5 साल तक राम की याद भी नहीं आयी। आज सत्ता हाथ में है और ही ताकत; तो फिर से भगवान श्री राम जी याद गयी। लेकिन अब आम-आदमी जागरूक हो चूका है, वो थोड़े समय के लिए भले ही बहकावे में जाये, पर अंत में वोट सोच समझकर सही उम्मीदवार को ही देगा। अब आम आदमी जान चुका है कि नेता हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद के नाम पर बहुत लूट चुके अब वो लुटने वाले नही हैं।

    उम्मीद है राजनीतिक पार्टियां अपने इन जातिगत, क्षेत्रीय और धर्म के मुद्दों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर ध्यान देंगी और पारदर्शिता के साथ चुनाव लड़ेगी; तभी देश प्रगति की दिशा में आगे बढेगा।
जय हिन्द।














भगवत सिंह राठौड़
जसोलराजस्थान


 
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