क्या हमे अपने
ही देश में अपने विचारो को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता है? क्या हमे अपने
ही देश में अपनी पसंद के क्षेत्र में काम करने की
स्वतंत्रता है? क्या हमे अपने ही देश में अपनी पसंद के पहनावे की स्वतंत्रता
है? क्या हमें अपने ही देश में अपने तरीके से जीने की
स्वतंत्रता है.......??
अगर इन प्रश्नों के उत्तर सेद्धान्तिक तौर पर
सोचे तो "हाँ" में ही होंगे, क्योकि बेशक हमारे देश का कानून
हमे इन सब के लिए स्वतंत्रता तथा अधिकार देता है, लेकिन अगर हम वास्तविकता
में देखे तो ये सब मिथ्या प्रतीत होता है। अभी-अभी कश्मीर की तीन बालिकाओ के
खिलाफ वहाँ के मौलवी साहब ने फतवा जारी कर दिया, क्योकि वो एक संगीत
बैंड(music band) में परफॉर्म कर रही थी। मौलवी साहब ने
कहा,"इस्लाम संगीत की इजाजत नही देता"। और दुःखभरी बात तो यह है कि उन
बालिकाओ ने भी उनके दबाव में आकर संगीत से नाता तोड़ने का निश्चय किया है। ये हमारे
समाज की कुप्रथा ही है जिसके कारण आज इन बालिकाओ को इनकी प्रतिभा
इन्हें आगे बढ़ने के बजाय रोक रही है।
अभी- अभी एक फिल्म
"विश्वरूपम" रिलीज़ हुयी, लेकिन तमिलनाडु में इस पर प्रतिबन्ध लगा
दिया गया, क्योकि तमिलनाडु सरकार का मानना है कि इसमें किसी समुदाय विशेष के
खिलाफ टिप्पणी की गयी है। जब सेंसर बोर्ड ने कोई आपत्ति नही जतायी तो फिल्म किसी
समुदाय विशेष के खिलाफ केसे हो सकती है? उस समुदाय विशेष का यह भी एक (बेतुका) तर्क
है कि फिल्म का नाम "विश्वरूपम" संस्कृत में है, तमिल में नही है। नाम
तमिल में नही होने से या संस्कृत में होने से कोई फिल्म किसी समुदाय विशेष के
खिलाफ केसे हो जाती है?
बीजेपी के कद्दावर नेता पूर्व
केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह ने जब अपनी किताब "जिन्ना: इंडिया-पार्टीशन
इंडिपेंडेंस"("Jinnah:India-Partition-Independence") लिखी तो
उन्हें पार्टी से निष्काषित कर दिया गया था। वर्ष 2005 में जब लालकृष्ण
आडवानी(तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष) पाकिस्तान दौरे पर गये थे, तो वहाँ उन्होंने
"मोहम्मद अली जिन्ना" को धर्मनिरपेक्ष कहने पर उन्हें
पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। क्या हमारी संस्कृति हमे दूसरे देश के राजनेता का सम्मान करने का संस्कार नही देती है? अगर हाँ तो
फिर इन्हें(आडवानी )गलत क्यों ठहराया जाता है। जब इन नेताओ को भी अपने विचार
अभिवयक्त करने की स्वतंत्रता नही है तो आम आदमी को ये नेता क्या हक
दिलाएंगे! जब हमारे देश में सरकार चलाने वाली पार्टिया ही ऐसा उदहारण पेश
करेगी तो आम नागरिक अब क्या उम्मीद रखेगा! राजनीतिक पार्टिया अपने स्वार्थ के
लिए जाति, धर्म, मजहब, समुदाय और कौम के नाम पर वोट की राजनीति करती है।
सभी
राजनीतिक पार्टिया अपने-अपने वोट बैंक के लिए आम जनता को बाँटने का प्रयास करती
है। हमें यह सब बदलने की जरुरत है। हमे व्यक्तिगत, जातिगत और समुदाय विशेष
के स्वार्थ से ऊपर उठकर देश की एकता और अखंडता को अक्षुणता को कायम रखने का
प्रयास करना चाहिए। तभी हम एक स्वस्थ धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक देश का निर्माण
करने में सफल होंगे।
जय हिन्द।
भगवत सिंह राठौड़
जसोल, राजस्थान