मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का दूसरा कार्यकाल ज्यादातर घोटालों के कारण चर्चा में रहा। चाहे कामनवेल्थ गेम्स घोटाला हो या 2G स्पेक्ट्रम घोटाला हो या कोयला घोटाला हो हर घोटाले में यूपीए सरकार हमेशा कठघेरे में खड़ी दिखाई दी। महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे और भी कई मुद्दे सामने आये पर इनमे से किसी भी मुद्दे पर कांग्रेस के युवा नेता राहुल गाँधी ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नही दी। कांग्रेस उन्हें अगली बार 2014 के चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार मानती है। जिस आदमी ने अभी तक राष्ट्रीय या यहाँ तक कि राज्य स्तर के किसी भी सरकारी पद(मंत्री पद) पर काम नही किया है, तो यह तो जल्दबाजी ही होगी कि बिना अनुभव के उन्हें सीधी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया जाये।
अभी-अभी कुछ दिनों पूर्व राहुल गाँधी को "औपचारिक" तौर पर कांग्रेस का उपाध्यक्ष घोषित किया गया। मैने यहाँ "औपचारिक" शब्द इसलिये इस्तेमाल किया, क्योकि वो वैसे भी कांग्रेस में सोनिया गाँधी के बाद दूसरे नंबर के नेता थे, तो ये ये घोषणा तो मात्र औपचारिकता ही है।कांग्रेस के पहली पंक्ति के कई नेता मानते है कि राहुल गाँधी प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस की पहली पसंद है तथा उनमे देश का नेतृत्व संभालने की क्षमता है। कांग्रेस में राहुल गाँधी युवा नेता है तथा वो युवाओ का प्रतिनिधित्व करते है और युवा उनको अपना आदर्श मानते है। लेकिन जब बात युवा के हक़ की आई तो राहुल गाँधी कभी कुछ नही बोले, क्यों न बात चाहे दिल्ली गैंग रेप पीड़िता दामिनी की हो या कोई और.........।
तो फिर उनको हम युवाओ का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता कैसे मान सकते है।
जब भी राहुल गाँधी को कोई बड़ी जिम्मेदारी सौपी गयी, तो उनको ज्यादा सफलता कभी हाथ नही लगी।आप उदहारण स्वरुप 2009 में लोकसभा चुनाव ले सकते है जिसमे उन्हें उत्तरप्रदेश की कमान सौपी गयी थी तो वे वहाँ भी कुछ खास नही कर पाए थे फिर उन्हें इस बार फिर उत्तरप्रदेश में विधानसभा की कमान सौपी गयी तो एक बार फिर वो कांग्रेस को जीत दिलाने असफल साबित हुये।
उम्मीद है कि राहुल गाँधी अपनी इन असफलताओ पर विश्लेषण करके अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करेंगे तभी वो कांग्रेस और देश को एक सशक्त नेतृत्व देने में कामयाब होंगे।
भगवत सिंह राठौड़
जसोल, राजस्थान