'आज' का 'आगाज़'
ज़िन्दगी बीते हुए और आने वाले पलों के मिलन से बनी है और निः संदेह हर पल इस ज़िन्दगी से जुड़ कर इसे एक नया रूप और नई परिभाषा देने में समर्थ है | हर बीता हुआ पल हमारी सोच का आइना है जिसे हमने अपने नज़रिए से सवारा या बिगाड़ा है | अक्सर गुजरे वक़्त को याद कर खुश हो जाता हूँ और मन करता है कि इन बीते हुए लम्हों को कहीं कैद कर, हर लम्हा इन सा बना लूँ , कभी पलों की स्मृति से आखों में नमी आ जाती है और जी चाहता है कि भावनाओं के इस अथाह सैलाव में तेरता रहूँ और इनसे कभी नाता न तोडूँ | ये जानते हुए भी कि वक़्त किसी का मोहताज नहीं, सोचता हूँ कि काश हर बिगड़े हुए पल को वापिस बदल सकूं , हर आने वाले पल को अपने अनुसार लिखूं .|
' सोच' इंसान की मानसिकता की निशानी है और वक़्त का हर 'क्षण' उस सोच की वास्तविक धारणा | पर न जाने क्यों अक्सर इंसान की सोच उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है | जाने अनजाने में ही सही पर 'सोच' वक़्त को नया आंकलन देती है | शायद इसलिए क्यों कि हर व्यक्ति सिर्फ व्यक्तिगत और सामाजिक दायरे में सिमटा हुआ है जहाँ से बाहर निकलना बेहद जटिल है , मगर समय की गति का अनुमान सही मायनों में सिर्फ वही शक्स लगा सकता है जिसने हर लम्हे के महत्व को समझा हो | ' वक़्त' बदलाव का पर्याय है | इसकी सीमा का नाप नहीं ; इसकी ताकत अपार है | लेकिन जीना सिर्फ पलों का समूह एकत्रित करना नहीं है बल्कि ज़िन्दगी वर्त्तमान को पकड़ कर, भविष्य को मजबूत बनाना है | हर आने वाला कल हमारे पिछले कल से प्रेरित है | इसका यह मतलब नहीं कि यदि हमारा 'आज' सही नहीं है तो हमारा कल बेहतर नहीं हो सकता | जिसने 'आज' की महत्वता को जाना और इसे थाम लिया उसकी 'कल' जीत निश्चित है और जिसने 'आज' को 'कल' के भरोसे छोड़ दिया उसका 'आज' और 'कल' दोनों दुर्लभताओं से घिरा हुआ है | हर इंसान बदलाव की चेष्टा करता है पर जीतता वही है जो 'आज' और 'अभी' के पलों को सवारने में माहिर हो | हर पल को 'आज' और 'अब' समझ कर जिओ :)
- Akshay Thakur