कशमकश


जिंदगी की इस कशमकश की एक जंग
अर्ज़ करना चाहता हूँ |
दिल वीरान है अब तक मेरा
 बस इसमें  जिंदगी भरना चाहता हूँ ||
लेकिन जिंदगी की इस पेचीदगी ,
को नहीं समझ सका अब तक मैं|
बस अब तो यही ख्वाईश है मेरी
दूसरों की वीरानगी ख़तम करना चाहता हूँ||
दिल वीरान है .............
शायद स्वार्थ है इसमें
लेकिन क्या करुं बस  यही सहारा है जिसमें
अपने दिल को मैं  आबाद कर सकता हूँ ,
शायद यही राह  है जिसमें दुनिया से प्यार कर सकता हूँ
 बस अब तो मैं दूसरों के लिए आहूति देना चाहता हूँ||
दिल वीरान हैं ............
नहीं पता था यज्ञ की तपस   का मुझे,
 और शायद मेरे स्वार्थ का एक और पैंतरा हो गया|
उसमें मैं तो बच गया लेकिन दिल फिर वीरान हो गया|| 
समझ  गया फिर मुझे 
बस अब मैं  ये स्वार्थ ख़त्म  करना चाहता हूँ 
दिल वीरान है मेरा इसमें जिंदगी भरना चाहता हूँ ||

दीपक कटारा
जयपुर , राजस्थान 
 
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