परिवर्तन-TRANSFORMATION

समय अपनी क़रवटें ले रहा है और परिवर्तन अपनी ढाल ....।परिवर्तन अपनी घटाए बिखरा ही देता है चाहे वो संस्कार हो या संस्कृति ।परिवर्तन समय से परिबद्द है लेकिन समय की परिवद्धता की कोई परिभाषा नहीं है ,वो अपनी रफ़्तार मे हैं ।समय का सिक्का कब अपना रुख बदल ले ,कब नायक खलनायक बन जाये हमारी सोच से परे है ।मेरा आशय आज की युवा पीढ़ी से जुड़े कुछ मुद्दे से है ।जब बच्चा माँ की कोख से जन्म लेता है तो वो मनमोहक ,सीधा और सच्चा ही होता है ,चाहे वो भविष्य मई पाप की गोद मे  पछाड़ क्यों न मार रहा हो ।बात करे परिवर्तन की और उससे जुडी संस्कृति की तो दिमाग को झकझोर कर देने वाले द्रश्य नजर आते है ।उसे आधुनिकता कहे या संस्कारो की कशमकश ,आज का युवा खुद पर ज्यादा तवज्जो देता है । बिडम्बना है की आधुनिकता ने उस संस्कृति को  भी अँधेरे की चादर ढ़क दी है जिसमे एक पुत्र ने बिना बिचारो के मापतोल के अपने जीवन के 14 स्वर्णिम वर्ष न्योछावर कर दिए ।ओर  आज उसी संस्कृति से उपजी पीढ़िया पूर्वजो के कदम से कदम मिलाने के वजाए उन्हें सर्मिन्दा कर रही है ।यदि उस इंसान पर प्रकाश डाले जिसे समय ने अपने फेर मे  जकड लिया हो आशय जिस  व्यक्ति ने अपनी संतान को हर छ्ण उसके जीवन मई पथ प्रदर्शन किया हो और वही संतान उसे घर के बहार का रास्ता दिखाए तो विचारो की ओट मे  अँधेरा छा जाता  है और प्रश्नों की भरमार हो उठती है ।क्या आज का पर्यावरण इसके लिए जिम्मेदार है ?क्या संतान के पालन पोषण मे  कोई कमी रह गयी हो ?क्या इन सभी प्रश्नों का जबाब (जिम्मेदार )आज की बदलती हुई संस्कृति है ?वेशक आज की बदलती हुई संस्कृति आज  के रहन -सहन ,लोगो के नजरिये को बदल दिया है ।एश और आराम,प्रगति  को तवज्जो देना सिखाया है ।लोगो के बदलते नज़रिये पर प्रकाश डाले तो ज्ञात होता ही युवा

पीढ़ी का हर उद्येश्य के पीछे उसका कारण (लॉजिक )तलाश करती है जो  कही न कही रिश्तो की संकीर्णता के लिए जिम्मेदार है ।आज अर्थ और रिश्तो मे अर्थ का पलड़ा नजर आता है ।अर्थ की मादकता तो इस ब्रह्माण्ड मे व्याप्त किसी भी मादक प्रदार्थ से कही अधिक है ।और इसकी मादकता सीधे दिमाग पर असर करती है ।अर्थात अर्थ की प्रधानता अति की सीमा मे चली जाती है और अति हमेशा गलत दिशा या परिणाम का कारण रही है  ।सम्पूर्ण बातो का आशय है की लोगो की प्राथमिकता अर्थ और प्रगति से मुडकर प्यार और रिश्तो के आंचल मे  आ गिरे उसका जीवन स्वर्णिम हो उठेगा ।और मे  समझता हूँ की यही इस समस्या का एक मात्र रास्ता है ।अंत मे यही लिखूंगा की एक चीज जो भगवन के पास भी नही है , वो है रिश्तो मे इंसानी भावनाओ के आवेश का सुख। 
     
         दीपक कटारा 
         जयपुर , राजस्थान 



 
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